Wednesday, October 10, 2007

यादों का दर्पण


मुझसे तुम क्या दूर गईयादों का दर्पण छोड़ गई... दिल बहलता जिससे मेरासाथ जो मुझको मिलता तेरापर तुम तो मुझसे रुठकरऐसे क्यूं नाता तोड़ गई...मुझसे...इसमें जब तेरा चेहरा दिखतातब मैं खोया-खोया रहतापर तुम तो सदा के लिए मेरातन्हाई से रिश्ता जोड़ गई...मुझसे...क्या-क्या नहीं सपने सजाये?फूलों के शहर में महल बनायेपर दिल ही नहीं तुम तोमेरा ताजमहल भी तोड़ गई...मुझसे...सबने ही ठुकराया मुझकोतुमतो कहती अपना मुझकोऔरों की क्या !तुम भी तो मुंह मोड़ गई..मुझसे तुम क्या दूर गईयादों का दर्पण छोड़ गई...

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