Wednesday, October 10, 2007

मैथिलीक पढ़ाई

मैथिलीक अपन गौरवपूर्ण इतिहास आओर समृद्ध साहित्य रहल अछि...अष्टम अनुसूची में एकरा स्थान मिल चुकल अछि। सरस आ मधुर मैथिलीक लेल सैकड़ों साल पहिने विद्यापति कहने छलथिन्ह देसिल बयना सभ जन मिट्ठा...मैथिलीक मिठास, भाषाक लोच अद्भुत अछि...लालू यादव के मुख्यमंत्री बनला के बाद सं मैथिली मातृभाषा के रूप में सिलेबस सं हटा लेल गेल...आब त मैट्रिक या कॉलेज में विद्यार्थी सभ तं मात्र ५०...१०० नंबर लेल एकरा एकटा विषयक रूपे रखि लैत छथि।ओना अगर कॉलेज, विश्वविद्यालय में पढ़ाई के रूप में देखल जाय त मैथिलीक पढ़ाई सभस पहिने कलकत्ता विश्वविद्यालय में १९१७-१९१८ में शुरू भेल....१९२५-२६ में बनारस में शुरू भेल...पटना विश्वविद्यालय में सेहो १९३७-३८ में मैथिलीक पढ़ाई शुरू कएल गेल... १९७२ में दरभंगा में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय बनला के बाद एहिठाम सेहो एकर पढ़ाई शुरू भेल...एखन बिहार झारखंड के सभ विश्वविद्यालय में मैथिलीक पढ़ाई भ रहल अछि...मिथिलाक संगहि मैथिलीक पढ़ाई नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय में होयत अछि.....बांग्लादेश के ढ़ाका विश्वविद्यालय में कवि कोकिल विद्यापति एकटा विषयक रूप में पढायल जाइत अछि...जकरा लेल मैथिली भाषाक ज्ञान जरूरी अछि...इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय में मैथिलीक पढ़ाई शुरू करबाक लेल प्रस्ताव भेजल सेहो गेल अछि।मुदा मैथिलीक प्रचार प्रसार के लेल मिथिलाक लेल संघर्ष करय वाला लोक सभ के ई बात पर ध्यान देबय पड़त कि मिथिलांचल में दोकानक, ऑफिसक बोर्ड, प्रचारक बैनर होर्डिंग मैथिली में होय एकर कोशिश कएल जाय...एहन कोशिश कएल जाय जे मैथिली भाषा में बेसी सं बेसी किताब सभ मार्केट में आसानी में उपलब्ध भ सकय।गीत-नादक कार्यक्रम बेसी सं बेसी भ सकय त आओर नीक.मैथिलीक विकास के शुरुआती तौर पर प्राकृत आओर अपभ्रंश केर विकास सं जोड़ि क देखल जाय अ...करीब ४-५ करोड़ लोक मैथिली के मातृभाषा के रूप में प्रयोग करय छथिन्ह...मैथिली के अपन समृद्ध इतिहास रहल अ...मैथिली के अपन लिपि अछि मिथिलाक्षर...आओर1965 में साहित्य अकादमी सं मैथिली के साहित्यिक भाषाक दर्जा मिलल। २००३ में एकरा संविधानक अष्टम अनुसूची में शामिल कएल गेल...मिथिलांचल केर बाहर सेहो कयटा विश्वविद्यालय में मैथिलीक पढ़ाई होयत अछि।मुदा करोड़ों लोकक बजनिहार होयबाक बादो एकर जे विकास होबाक चाहि नहिं भेल...राज्य राजनीति केर कारणे ई उपेक्षा के शिकार बनल रहल...स्कूल कॉलेज में एकर पढ़ाई कम भ गेल...मातृभाषा के रूप में ई पाठ्यक्रम सं हटा देल गेल...एकरा लेल सिर्फ राजनेते सभ के दोष नहिं देल जा सकय अ...मैथिल लोक खुद कम जिम्मेदार नहिं छथि...ओ अपन नुनु, बुच्ची के मैथिली नहिं पढ़ावय छथिन्ह...मिथिला में दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, पूर्णिया, सहरसा कतौ चलि जाउ...अहां के अकटा अक्षर मैथिली में लिखल नहिं मिलत...कोनो बैनर, बोर्ड, होर्डिंग, विज्ञापन, पर्चा मैथिली में देखय के नहिं मिलत । एहि लेल की सरकार के दोष देल जाउ ? सवाल अई आखिर कहिआ तक मैथिली के आ हाल रहत ? एकरा अपन उचित सम्मान कहिआ मिलत? पढ़बा-लिखवा आओर बजबा में जे मैथिल सभ में उदासीनता आयल अछि ओकरा कि कलह जाय...ऑर्कुट पर तं कएटा मैथिल साफ साफ मना कए देला जे हमरा सं मैथिली में स्क्रैप नहिं करुं।ओना दिआ लक खोजलो पर शायदे कोनो भाषा मिलय जेहि में मैथिली सन मिठास होय...मैथिली तं प्रेम, प्यार केर भाषा अई...अहि में त हम ककरो सं जोर स बात तक नहिं कए पाबैत छी... गाम घर में कई बेर एहन देखबा के मिलल जे लड़ाई झगड़ा के समय जोर जोर सं बोलबा के क्रम में ओ हिंदी...अंग्रेजी पर चलि आबैत छथिन्ह...मैथिली में तं अहां झगड़ा कए नहिं सकैत छी...मैथिली के बारे में कइ लोक सं अहो सुनय के मिलल जे ई ब्राह्मण, कायस्थक भाषा अछि...ऐहन नहिं छै मुदा आम लोक ज्यादा सं ज्यादा एकरा प्रयोग में लयताह एकरा लेल जागरुकता लाबय के जरूरत छै...अलख जगाबय के जरूरत छै...जखन तक लोक में अपन भाषाक लेल प्यार, अनुराग नहिं देखबा में मिलत...एकर विकास संभव नहिं...ओना अष्टम अनुसूची में शामिल भेला के बाद एक बेर फेर सं हालात बदलय केर उम्मीद जागल अछि।हमरो सभके लिखय-पढ़य आ बाजय में बेसी सं बेसी एकर प्रयोग करय ।

1 comment:

Gajendra said...

बहुत नीक ब्लॉग लागल।