Wednesday, October 10, 2007

मिथिलाक मखान


मिथिलाक बारे में ई कहावत मशहूर अछि पग पग पोखर माछ मखान सरस बोल मुस्की मुख पान...मुदा मिथिलाक पहचान मखान संकट में अछि... अई बेर आइल प्रलयंकारी बाढ़ स मखान क खेती के बड़ नुकसान पहुंचलअछि... भ सकय अ एहि बेर अहां के खाई लेल कम मखान मिलय... मखान एकटा नीक गुण बला आहारअछि...मखानक आनंद अहां कच्चा, धी में फ्राई क...खीर बना क ल सकैय छी...बच्चा में त हम सभ पोखरि मेंजाक कच्चा दाना खाक जे सुख पावैत छलौंह ओकरा कि कहल जाउ...मिथिलांचल आओर मखान भने एक दोसरके पर्याय होय...मिथिलांचलक लेल भने सांस्कृतिक आ आर्थिक रुपेअहम स्थान रखैत होय...मुदा एहि व्यवसाय के आई धरि नई त आगा बढ़ावय के कोशिश कएल गेल आओर नईआई धरि एकरा उद्योग के दर्जा देल गेल... मिथिला में जतय दोसर उद्योग धंधा नहिं अछि...कृषि आधारित उद्योग केबढ़ावा देबाक जरूरत अछि... मखान... आम... लीची... स जुड़ल उद्योग बनाबय पड़त.... मिथिलाक समृद्धि के लेलई बड़ जरूरी अछि... मखानक खेती के बढ़ावा नहिं मिलला स किसान परेशान छथि... ओना आब गाम घर मेंनवका पोखरि सेहो नहि खुना रहल अछि...पोखरि कम भ रहल अछि...सुखा रहल अछि... आ एहि सभ कारणेमखान मिथिला स खत्म भ रहल अछि...केवटी दरभंगा के श्री विद्यानाथ झा जी एकरा विकासक लेल जीजान सकाम जुटल छथिन्ह॥मुदा हुनका जे सहयोग मिलवाक चाहि से नहिं मिल रहल अछि...ओना आब मखान सिर्फ मिथिलांचले नहिं मेट्रो सिटी में जतय ताकु मिल जाइत... किराना दुकान में मिल जाइतअछि॥मुदा आधुनिक बाजारत चमक दमक में ई व्यवसाय पिछैड़ रहल अछि... किसान मखानक खेती छोड़िदोसर धंधा अपना रहल छैथि...खेती छोड़ि दिल्ली...पंजाब के रुख कए रहल छथि...एकर खेती के व्यावसायिक ढंगसे बढ़ावा देबय के जरूरत अछि...एकर औषधिय आ पौष्टिक गुण के प्रचारित करय के जरूरत अछि...एकर महत्वके प्रचारित करय के जरूरत अछि...ज्यादा स ज्यादा पोखरि बनावय के जरूरत अछि... अगर एकर खेती के बढावादेल जाउ त एहि में कोनो संदेह नहि जे लोग सभ के रोजगार त भेटबे करतैंह...मिथिलांचलक पहचान मखान सेहोबचल रहत.........

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